ऑड-इवन के पहले और बाद में दिल्ली का प्रदूषण – विहंगावलोकन
दिसम्बर 15 के दूसरे हफ्ते में मैं दिल्ली में था। हर कोई प्रदूषण के बारे में बात कर रहा था। और मैं हवाई जहाज से खूबसूरत दिल्ली को देखने की कोशिश कर रहा था। लेकिन देख नहीं पाया। सब तरफ धूसर रंग छाया था। दिल्ली की कई विशेषताएँ हैं: ऊँची इमारतें, वृक्षों के झुरमुट, भीड़-भाड़ भरी सड़कें। लेकिन उस दिन सब कुछ एक ही रंग अर्थात धूसर में रंगा हुआ था। मैं पहली बार दिल्ली नहीं आ रहा था और आमतौर पर हम इस प्रकार के दृश्य देखते हैं, लेकिन मैं गहरी धुंध की कल्पना कर रहा था। पर मन में कहीं ये विचार आया: क्या ये इतना अधिक प्रदूषण है?
मैं समय पर उतरा लेकिन जमीन पर धूप नहीं थी। साफ दिखाई दे रहा था लेकिन आप धुंध भरी हवा देख सकते थे। मैं दिल्ली में लगभग एक हफ्ते ठहरा। हर दिन सुबह मैं धुंध के रूप में प्रदूषण देख सकता था। मैंने इसका अध्ययन करने का निर्णय लिया और प्रदूषण के वर्तमान स्तर और WHO के निर्देशों को देखा। दिल्ली बिलकुल किनारे पर जी रही थी। WHO के निर्देशों के अनुसार पूरी तरह खतरनाक स्थिति थी। मैं लौटा और हमने इसका लेखा-जोखा रखने का निर्णय किया। ऑड-इवन ड्राइविंग योजना हर तरफ चर्चा में थी और हम चिंतित थे कि काश इसे सही तरीके से लागू किया जा सके।
दिसम्बर 15 के अंत में छुट्टियों के कारण पीएम 2.5 और पीएम 10 के प्रदूषण का स्तर नीचे आया जो कि अच्छी खबर थी। हम खुश थे कि यदि सड़क पर वाहनों की संख्या घट गई, तो इससे प्रदूषण कम होगा और हमें आशा भी थी। फिर 1 जनवरी 16 आई लेकिन पीएम का स्तर अत्यंत अधिक बढ़ गया। अपने दिल में मुझे बहुत बुरा लग रहा था क्योंकि हमें बड़ी आशा थी कि ऑड-इवन योजना प्रदूषण घटाएगी। यदि यह असफल होती है, तो सड़क पर कारें घटाने की हमारी उम्मीद भी असफल हो जाती है। यदि यह असफल होती है तो हम सिद्धांत रूप से इस बात पर असफल हो जाते हैं कि हम एक खतरे के लिए भी एक नहीं हो सकते। यह योजना उस सप्ताह भी जारी रही।
इसके अगले सप्ताह में मेरा फिर से दिल्ली जाना हुआ। पिछली बार से अलग इस बार, मैं विमान से दिल्ली को देख सकता था। मैं उतरा और मुझे धूप दिखाई पड़ी। मैं खुश था कि चाहे आँकड़े सुधार ना दिखाएँ लेकिन मैं जमीनी हालत बदले हुए देख ही रहा था। मैंने हवा को अधिक साफ़ पाया। जब मैंने इसे अपने मित्रों से साझा किया तो उन्होंने इसे मानसिक सोच भर बताया। फिर भी मैं ये सोचकर खुश था कि यदि बहुत से लोगों को यही अनुभव हुआ है, तो हम जीत गए हैं। और इसके बाद आँकड़े आना शुरू हुए। प्रदूषण का स्तर इतना कम हुआ था मानों यह छुट्टियाँ ही हों। मैं खुश था।
मैंने कुछ ड्राईवरों से बात की और उन्होंने बताया कि ना केवल प्रदूषण कम हुआ है, बल्कि उन्हें ट्रैफिक में कम समय लगता है और अब उनके लिए यातायात बहुत आसान हो गया है। मैंने कुछ मित्रों से बात की और उन्होंने भी यही विचार व्यक्त किये। प्रदूषण केवल वाहनों की कम संख्या के कारण ही नहीं घटा बल्कि सड़क पर चलने वाले वाहनों द्वारा कम समय बिताने के कारण भी प्रदूषण में कमी आई।
क्या यह हमारी, भारतवासियों की जीत नहीं है। पहली बार गर्व का एहसास हुआ कि चाहे लाख परेशानियाँ थीं लेकिन हमने एक होकर इसे कर दिखाया। ऐसा हम भी कर सकते हैं। मुझे लगता है कि हमें कार का प्रयोग कम करना चाहिए। ऑड-इवन फ़ॉर्मूले को भुला दीजिये। यदि हम केवल यह तय कर लें कि हफ्ते में 2-3 दिन हम कार नहीं चलाएंगे और कार-पूलिंग या सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करेंगे, तो क्या ये अच्छा नहीं होगा? यह सही है कि नीतियां बनाने वालों को बहुत कुछ करने की जरूरत है, लेकिन हमारी अगली पीढ़ी के लिए, प्रदूषण घटाने के लिए, यदि हम थोड़े से अनुशासन का पालन करें, तो हम बहुत बड़ा अंतर ला सकते हैं। शाबाश दिल्ली!!!
बलजीत सिंह