अधिकतर महिलाओं में मीनोपॉज लगभग 50 वर्ष की आयु के आस-पास होता है। मीनोपॉज के दौरान दोनों ओवरी (डिम्बग्रंथियाँ) का क्षय हो जाता है, और इनसे प्राप्त होने वाले एस्ट्रोजन का स्तर घट जाता है।
एस्ट्रोजन की कम मात्रा से बाहरी जननांग सूख जाते हैं, योनिमार्ग की बाहरी त्वचा की चर्बी घट जाती है, योनि की परत पतली हो जाती है और योनि के पीएच स्तर में बदलाव हो जाता है, जो बार-बार होने वाले संक्रमणों को उत्पन्न करता है।
संक्रमणों को नियंत्रित करने के लिए अम्लयुक्त स्वच्छता कारकों का बाहरी प्रयोग अत्यंत प्रभावी होता है।
सूखी त्वचा भी मीनोपॉज में होने वाली प्रमुख समस्याओं में से एक है। त्वचा में सूखापन त्वचा की डर्मिस परत में हायलुरोनिक अम्ल की मात्रा घटने के कारण उत्पन्न होता है। इसके कारण त्वचा की जल को संयुक्त रखने वाली क्षमता कम हो जाती है। यह समस्या और शरीर में संचारित होने वाले एस्ट्रोजन हार्मोन का घटा हुआ स्तर, त्वचा की शुष्कता की समस्याओं जैसे झुर्रियाँ, किसी खास जगह या पूरे शरीर में होने वाली खुजली, एक्जिमा आदि को उत्पन्न करती हैं। सूखी त्वचा को नियंत्रित करने में नमी और चिकनाई देने वाले पदार्थों का प्रयोग प्रभावी होता है। हालाँकि साबुन के प्रयोग से परहेज करना चाहिए।
मीनोपॉज के दौरान महसूस होने वाले झटके भी महिलाओं के लिए अत्यंत समस्याकारक होते हैं। इसमें एकाएक होने वाला गर्मी का एहसास होता है और कभी-कभी लाल चेहरा और पसीना भी होता है। ये गर्म झटके दिन में किसी भी समय उत्पन्न हो सकते हैं। कभी-कभी इनके कारण सो पाना कठिन हो जाता है।
मीनोपॉज के दौरान आने वाली एक और आम समस्या है हर्सुटिस्म, या चेहरे के पर बालों की अधिकता। लेज़र के द्वारा इनका प्रभावी रूप से इलाज किया जा सकता है।